मैं लगभग 20 वर्ष से टेक्नोलॉजी जर्नलिस्ट हूं और इससे ज्यादा समय से टेक्नोलॉजी से जुड़ा हूं। समय के साथ मुझे अहसास हुआ कि डिजिटल अनुभव कितना अस्तव्यस्त कर देता है। टेक्नोलॉजी ने हमें पुरानी बेड़ियों से मुक्त किया है लेकिन उसने अपने हिसाब से तथ्य चुनने, षड्यंत्रकारी विचार को बढ़ाने और हर मानवीय प्रयास को नाटकीय तौर पर देखने की संस्कृति भी बनाई है। उसने हमारी दैनंदिन वास्तविकता के अनुभव में भी बदलाव किया है। दुनिया आज पहले से बेहतर हुई है पर डिजिटल वर्ल्ड हर किसी को बदतर सोचने के लिए मजबूर करता है। रोज आने वाली खबरें आपको परेशान नहीं करती हैं बल्कि उनकी गति, संख्या और झूठ हमें प्रभावित करता है। इसलिए अब मैं मुद्दे की बात पर आता हूं। 2019 आ चुका है और आपने अब तक मेडिटेशन क्यों नहीं शुरू किया है।
कुछ वर्ष पहले मुझे आशंका हुई कि इंटरनेट का तेजाबी मैकेनिज्म मेरे दिमाग को चौपट कर रहा है। मुझे एक झगड़ालू, उन्मत्त और सनकी गंवार के रूप में बदल रहा है। उसके बाद मैंने इस जहर को उतारने के लिए सब कुछ किया। ऑफलाइन रहने के लिए एप ब्लॉकर्स और स्क्रीन मॉनिटर्स से सलाह ली। मीडिया का बेहतर अनुभव करने के लिए मैंने प्रिंट अखबारों से समाचार पढ़े। फिर भी, ऑफलाइन होने के जीेवन बदलने वाले जादू की कुछ सीमाएं हैं। कार, क्रेडिट कार्ड्स के समान स्मार्टफोन भी जीवन का हिस्सा हैं।
ऑफलाइन दुनिया ऑनलाइन घटनाक्रम से प्रभावित होती है। इसलिए बचना असंभव है। टि्वटर से केबल न्यूज की प्रोग्रामिंग अप्रत्यक्ष रूप से तय होती है। आप बच्चों को फोन के दुष्प्रभावों से बचाने की जितनी कोशिश करें, उसका सामाजिक जीवन इंस्टाग्राम और फोर्टनाइट से गिरेगा, उठेगा। इसलिए दिमाग को कुंद करने वाले इंटरनेट के खराब प्रभावों से बचने के लिए मैंने ध्यान का सहारा लिया। अमेरिका के पश्चिम तट पर कई वर्षों से ध्यान लोकप्रिय है। यह किताबों, पॉडकास्ट, सम्मेलनों और एप के बीच चलने वाली होड़ का विषय भी है। कंपनियों के सीईओ, एक्टर इसकी प्रशंसा करते हैं और मेरे बच्चों के प्रायमरी स्कूल में ध्यान पढ़ाया जाता है।
वैज्ञानिक रिसर्च ने ध्यान, मानसिक एकाग्रता (माइंडफुलनैस) से शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य को होने वाले फायदे बताए हैं। थोड़े समय के लिए ध्यान करने से फोकस करने की क्षमता बढ़ती है, याददाश्त बेहतर होती है और शरीर की संवेदी कार्यप्रणाली में सुधार होता है। एक वर्ष पहले जब मैंने ध्यान शुरू किया था तब मैं यह जानता था लेकिन मुझे अचरज है कि कैसे उसने डिजिटल वर्ल्ड से मेरे संबंध बदल दिए हैं। पहले यह आसान नहीं था। डिजिटल महासागर में वर्षों गुजारने के बाद मैंने अनुभव किया कि मेरा दिमाग ज्यादा फोकस नहीं कर पाता है। मैंने एकाग्रता के लिए मेडिटेशन पर कई किताबें पढ़ीं, एप्स देखे और दूसरे तरीके अपनाए।
लगभग चार माह पहले मैंने ध्यान को अपनी प्रात:कालीन दिनचर्या का हिस्सा बना लिया। मैंने 10, 15, 20 और फिर 30 मिनट तक ध्यान किया। फिर उसके फायदे समझ में आने लगे। लगता है, मेरे दिमाग का सॉफ्टवेयर अपग्रेड हो गया है। वह आपके समय और दिमाग को प्रभावित करने वाले ऑनलाइन वर्ल्ड से सुुरक्षा के लिए डिजाइन हो चुका है। अब एप ब्लॉकर्स के बिना मैं ऑनलाइन बकवास से दूर रहता हूं। मुझे किसी चीज से वंचित होने की चिंता नहीं सताती है। मैं महत्वपूर्ण और मामूली चीजों में अंतर करना समझ गया हूं। मैं जानता हूं कि लोग इंटरनेट पर गलत जानकारी दे रहे हैं लेकिन मैं उसकी कोई चिंता नहीं करता हूं। (साभार The New York Times)